परात्पर तत्त्व की शिशुलीला
नित्य प्रसन्न राम आज रो रहे हैं। माता कौसल्या उद्विग्ग हों गयी हैं। उनका लाल आज किसी प्रकार शान्त नहीं होता है। बे गोदमें लेकर खड़ी हुईं, पुचकारा, थपकी दीं, उछाला; किंतु राम रोते रहे। बैठकर स्तनपान करानेका प्रयत्न किया; किंतु आज तो रामललाको पता नहीं क्या हो गया है। वे बार-बार चरण उछालते हैं, कर पटकते हैं और रो रहे हैं। पालनेमें झुलानेपर भी बे चुप नहीं होते। उनके दीर्घ दृगोंसे बड़े-बड़े बिन्दु टपाटप टपक रहे हैं।