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पति का दोष न देरवो

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पति का दोष न देरवो 

एक नयी नवेली वधू अपनी ससुराल में सबसे मिल जुलकर रहती थी ओर सबके साथ घुल मिलकर बातें करती थी। उसका पति विदेश गया हुआ था। एक दिन उसका ननद अपने भाई की चर्चा करने लगी और कुछ अनुचित बातें कर डालीं। 
नव वधू ने कहा-आप मेरे सामने उनकी बुराई न करो क्योंकि वे मेरे पूज्य देव हैं। 
ननद बोली–मैं अपने भाई की बुराई करू तो तुम्हें क्या परेशानी है? हम दोनों एक ही पिता की संतान हैं। साथ-साथ ही खेलकर हम सयाने हुए हैं। इसलिए मेरे मन में जो आयेगा वही कहती हूं। तुम तो कल पराये घर से आकर यहां की स्वामिनी बन बैठी हो। 
बहू ने कहा–ननद जी! गुस्सा न करो और मुंह में जो आये सो न बको, क्योंकि अब तुम्हें अपने भाई के साथ बहुत थोड़े दिन रहना है, परन्तु मुझे तो अब उनके साथ सारा जीवन व्यतीत करना है। यदि मैं उनकी निन्दा और दुर्गुणों को सुनूँगी तो हम दोनों में जो प्रेम होना चाहिए वह नहीं रहेगा। तथा हमारी गृहस्थी दुःखों का भण्डार बन जायेगी । इसलिए भविष्य में कृपा करके मेरे सामने उनकी निन्दा न करना। 
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