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धोबी का गधा बन गया

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धोबी का गधा बन गया

अपने को तू भूलकर, भरे और का नीर।
तेरी इस करतूत से, लगा हृदय में तीर॥ 
एक किसान जिसका नाम “कनछिदा “था, अपने  खेत की फसल को मजदूरों से कटवा रहा था। जब थोड़ा दिन बाकी रह गया तब कनछिदा ने मजदूरों से कहा शीघ्रता से फसल को काटो, कहीं ऐसा न हो कि संध्या हो जाए। हमें जितना डर और भय संध्या का है उतना डर तो हमें शेर का भी नहीं है। बराबर के खेत में एक सिंह किसान की यह बात सुन रहा था। उसने सोचा कि क्‍या संध्या हम से भी ज्यादा ताकतवर जानवर है क्योंकि किसान हमारा डर न मानकर संध्या से घबरा रहा है। 
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इतने में सूर्य छिप गया। किसान और मजदूर अपने- अपने घरों को रवाना हो गए और भोजन कर सो गए। संयोग से उसी गाँव के एक धोबी का गधा घर से निकल गया था। रात अँधेरी थी। धोबी उसको ढूँढ़ता-ढूँढ़ता उस खेत में जा निकला जिसमें  शेर बैठा हुआ था। धोबी ने शेर को अपना गधा समझ लिया।  “आव देखा न ताव ” धोबी ने झट से दो लाठी सिंह की कमर पर जमा दीं और उसके गले में रस्सी बाँधकर ले चला। उधर सिंह भी यह जानकर घबरा रहा था कि जिस संध्या का जिकर किसान कर रहा था, यह वही संध्या है। इसलिए वह धोबी के साथ चुपचाप चल पड़ा।  
सिंह अपने मन में सोच रहा था कि यदि मैं बोल पड़ा तो संभव है दो लाठी और खानी पड़ें । उसकी पीठ में पहले ही दर्द हो रहा था। उसने चुपचाप चलना ही ठीक समझा।  धोबी ने सिंह रूपी गधे को घर लाकर खूंटे से बाँध दिया।  प्रात: होने पर रोज की तरह धोबी ने सिंह पर कपड़ों की गठरी लादी और घाट को चल पड़ा। मार्ग में एक दूसरा सिंह खड़ा अपने सजातीय सिंह पर लादी को लदे देखकर आश्चर्य चकित हुआ। उसने सोचा इससे पूछना चाहिए कि बोझा ढोने का क्‍या कारण है? दूसरा शेर बोला भले मानस तुम  धोबी के गधे क्‍यों बने हो? पहले शेर ने कहा -बोलो मत यह जो पीछे-पीछे संध्या आ रही है यह बड़ी शक्तिशाली है। 
हमें तो इसने जबरदस्ती से अपना गधा बना ही लिया पर  ऐसा न हो कि तुमको भी मेरी तरह लादी लादनी पड़े। इसलिए तुम फौरन भाग जाओ। 
दूसरे सिंह ने कहा तू वज् मूर्ख है। तुझे यह भी पता नहीं कि संध्या किस वस्तु का नाम है। अंधेरे का ही नाम संध्या है। संध्या हमसे कोई अधिक शक्तिशाली प्राणी नहीं है, मिथ्या मानसिक कल्पना कर भयभीत हो रहे हो । इस शंका को दूर कर स्व-स्वरूप का चिन्तन करो। भाई तुम शेर हो और धोबी तुम्हारी भोजन की चीज है। जरा तुम अपनी आवाज करो तो ये सब भाग जायेंगे। यह सुनकर सिंह को अचानक  ही अपने स्वरूप का स्मरण हो आया और जैसे ही लादी को पटक कर गरजा तो धोबी घर की ओर भागा और सिंह वन  में चला गया। 
भाइयों! जीव वास्तव में सिंह था। कर्म रूपी किसान के डरावने वचन रूपी संध्या को सुनकर अज्ञान रूपी धोबी  का स्वयमेव गधा बना और कर्म रूपी लादियाँ लादी। जब सिंह रूपी सच्चे गुरु ने उपदेश दिया कि तुम गधे नहीं हो अपितु शेर हो अर्थात्‌ अशंक चेतन स्वरूप हो तभी उसे अपने स्वरूप का स्मरण हो आता है और जीव बन्धन रहित हो जाता है। 
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