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दोहावली

अधम वचन काकों’ फल्यो, बैठि ताड़ की छांह। रहिमन काम न आय है, ये नीरस जग मांह।।3॥ 

अर्थ–गैसे ताड़ की छाया में बैठकर कोई फल नहीं मिलता, मी प्रकार निंदनीय वचन फलदायी नहीं होते। कवि रहीम कहते हैं–हे मनुष्य संता में आकर किसी के काम नहीं आते, वे मनुथ पंत रसहीन होते हैं।

भाव–इस संसार में निष्रयोजन जीवन जीना यर्थ है। यदि जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है, जीवन किसी के काम नहीं आता है तो ऐसे जीवन का लाभ क्या है? कवि रहीम के कहने का आशय यही है कि  जीवन  सार्थक होना चाहिए। कभी किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए। किसी को कष्ट नहीं पंहुचाना चाहिए। जीवन को ऐसा बनाना चाहिए, जो दुसरे के  काम आ सके। दूसरों के साथ सहयोग करके ही आदमी यश पाता है  और लोकप्रिय होता है। 
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