| “देश की रक्षा के लिए सर्वस्त दान”! |… महाराणा प्रताप मातृ भूमि मेवाड़ को स्वतंत्र कराने के. | लिए वन और दुर्गम पहाड़ों में रहकर कष्टों को वहन करते , ‘ हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। इतना होने पर भी , उनके मुख पर जरा सा भी दुःख का कोई लक्षण दिखाई ‘ नहीं देता था। इतना ही नहीं वे अपनी मातृभूमि को सुखी . | बनाने और स्वतंत्र कराने के लिए काँटों को फूलों की सेज, वनों को सुन्दर महल, पर्वतों को श्रेष्ठतम् पर्यक और दुर्दान्त दानवों की तरह रखड़े हुए ऊँचे-ऊँचे विशाल खुक्षों को अपना अंग-रक्षक समझते हुए कठिन से कठिन कष्टों को भी स्वर्ग तुल्य समझ रहे थे।
यद्यपि सहाराणा प्रताप स॒गल लादशाह अकबर की विशाल सेना से लोहा लेते हुए उसके छकक््के छुड़ा रहे थे परन्तु इस समय उन्हें धवन का अभाव सता रहा था। वीर सेनिकों को एकत्र करने के ल्लिए उन्हें अतुल धन व्शी आवश्यकता थी ।॥ इस कारण वे चिन्ता में डूबे रहते थे।
कव्किस प्रकार ध्वन संग्रह व्किया जाये? इस प्रश्न पर सहाराणा प्रताप विच्चार कर ही रहे थे कि उसी समय उनके पुराने बूढ़े मंत्री भामाशाह उनके सामने उपस्थित हुए । प्रणाम करने के पशछचयात् उस देश हितैषी मंत्री भामाशाह ने कहा –राणाजी ! मुझे पता चला है क्छि इस समय आपको धवन की अत्यन्त आवश्यकता है॥ इस कारण से ही में आपकी सेवा में उऊपास्थित हुआ हूँ | चूँकिक आप अपने ल्लिए नहीं अपितु देश हित के. लिए ध्यन ले रहे हैं, इस्नत्तिए प्रत्येक देशावासी का कर्त्तव्य जन जाता है द्छि वह तन, मन, धन से अपनी मातृभ्पूमि व्की सेवा करेें। मेने आपकी ही सेवा में रहकर ध्यन्न एकत्र व्छिया था। इसल्लिए उस धन को में आपके हित के लिए ही नहीं अपितु भारत भूमि की रक्षा के लिए अर्पित करता हूँ।
इतना कहकर जीर भामाशाह ने अपनी समस्त सम्पत्षि देश क्की भलाई के लिए महाराणा को सौंप दी ।
सम्पत्ति मिलने पर महाराणा प्रताप ने अपने युव्द्ध को तेज व्छर दिया ॥ उन्होंने मुगत्तों से कई जार युब्दध किया ॥ अन्त में स्वयं व्लो राह्ट रूपी देखता के चरणों में समर्थित करके स्वर्ग त्तोकक को प्रस्थान कर गये
ध्यन्य हैं राणा प्रताप जैसे वीर जो अपने राष्ट्र और ध्यर्म व्के ल्लिए तन, सन, धन और परिवार तक को न््यौछावजर कर देते हैं। उनके इन बलिदानों का ही प्रणाम है कि सदियों व्यतीत हो जाने के बाद भी आज इतिहास उनका गुणगान कर रहा
है और करता रहेगा। क्