दुनिया कैसी, मुझ जैसी
‘ जयपुर रिसासत के एक गाँव में कजोड़ नाम का नाई _ रहता था। उस नाई ने धीरे धीरे दस अशर्फियां इक्कट्ठी कर ली थीं। चोरी हो जाने के डर से वह उन अशर्फियों को एक ‘ कपड़े में बांधकर अपनी हजामत को पेटी में ही रखता था। एक दिन वह नाई जब गाँव के जागीरदार के यहां हजामत बनाने गया तो जगीरदार ने उससे पूछा–क्यों भाई, ‘ कजोड़िया आज कल गांव के क्या हाल चाल हैं? नाई ने ‘ कहा–सबकी मौज है। गरीब से गरीब भी दस अशरफी से कम अपने पास रखकर नहीं चलता। जागीरदार समझ गया कि इसके पास दस अशर्फिया हैं। जागीरदार ने नाई से कहा–जा भाई तू जाकर चिलम भरला। जैसे ही कजोड़िया नाई चिलम भरने अन्दर गया, वैसे ही जागीरदार ने उसकी पेटी में से दसों अशर्फियाँ निकाल लीं। दूसरी बार जब नाई जागीरदार की हजामत बनाने आया तो जागीरदार ने उससे फिर गाँव के हाल-चाल पूछे। नाई ने कहा-सरकार सभी दुःखी हैं। जिस किसी के पास जितना धन था, सभी निकल गया। जमींदार समझ गये कि संसार में आपा सुखी तो सब सुखी, आपा दुः:खी तो संसार दुःखी। संसार का यही रवैया है।