तृष्णा
एक सन्यासी जंगल में कुटी बनाकर रहता था। उसकी कुटी में एक चूहा भी रहने लगा था। साधु ने अकेलापन दूर करने के लिए चूहे को मनुष्य की तरह बोलना सिखा दिया। एक दिन साधु से चूहे ने कहा – महाराज! मुझे बिल्ली से डर लगता है, अतः मुझे बिल्ली बना दें।
साधु ने चूहे को बिल्ली बना दिया। बिल्ली को कुत्ता तंग करने लगा तो उसने साधु महाराज से कहा – मुझे कुत्ते से डर लगता है। कृपया मुझे , कुत्ता बना दें। साधु ने उसे कुत्ता बना दिया। एक दिन उसने हाथी को देखा जो मस्ती में झूमता हुआ चला जा रहा था। उसे हाथी का जीवन पसन्द आ गया।
अब उसने साधु महाराज से हाथी बना देने की प्रार्थना की। महात्माजी ने उसे हाथी बना दिया। एक दिन एक राजा उसी जंगल में शिकार खेलने को आया। उसने हाथी को देखा तो उसे पकड़ लिंया। अपने साथ उसे घर ले आया।
एक दिन राजा और रानी हाथी पर बैठकर सैर करने को गये। हाथी को अपने ऊपर रानी का बैठना अच्छा नहीं लगा। वह राजा रानी को गिराकर जंगल में महात्माजी की कुटि पर वापिस आ गया।
राजा ने रानी को उठाकर पूछा – तुम्हें चोट तो नहीं लगी है | इधर हा थी ने सोचा कि इस रानी का जीवन बड़ा सुखमय लग रहा है। अतः मुझे भी रानी बनना चाहिए। अब उसने महात्माजी से प्रार्थना की कि उसे रानी बना दिया जाये। महात्माजी ने उसके असन्तोष को परखकर उसे फिर से चूहा ही बना दिया।