Home Uncategorized “ज्ञान का उपदेश”!

“ज्ञान का उपदेश”!

2 second read
0
0
42

“ज्ञान का उपदेश”! 

एक राजा अत्याधिक कंजूस था। उसके दरबार में एक बार एक नट अपनी कला प्रदर्शन करने के लिए पधारा। राजा ने उससे कहा–तुम्हारी कला दो दिन बाद देखेंगे। दो दिन पश्चात्‌ जब नट दुबारा आया तो राजा ने बहाना बनाकर कह दिया कि दो दिन बाद आना। नट दुःखी हृदय से मंत्री से कहने लगा कि यदि राजा साहब को इसमें दिलचस्पी नहीं है तो मनाकर दें। मंत्री ने राजा से विनती की कि यह नट कई बार आ चुका है। यदि आप इसे कुछ नहीं देना चाहते तो कुछ मत दीजिए। हम दरबारियों द्वारा दिया गया पारितोषिक ही पर्याप्त हो जायेगा। राजा ने अपनी सहमति प्रदान कर दी। 
नटनी ने आकर नाचना शुरू किया और नट ने बाजा बजाना प्रारम्भ किया। जब रात व्यतीत हो गई तो नटनी ने देखा कि अभी तक ईनाम के रूप में कुछ भी नहीं मिला है तो वह बोली ताल ढंग से लगाओ जिससे ईनाम मिल सके । नट ने उत्तर दिया-| बहुत गई थोड़ी रही, थोड़ी सी अब जाय। मूरख अब तो चेत रे, कोई नहीं सहाय ॥ यह सुनते ही एक महात्मा जी जो कम्बल ओड़े बैठे थे, उन्होंने नट को अपना कम्बल दे दिया। राजकुमार ने अपनी अंगूठी दे दी और राजकुमारी ने अपने गले का हार दे दिया। राजा को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा ने साधु से कहा कि तुम तो जाड़े से कांप रहे हो फिर तुमने अपना कम्बल क्‍यों दे दिया? । साधु ने उत्तर दिया–मैं साधु वत्ति को छोड़ना चाहता था। मेरी इच्छा विषय भोग करने की थी। परन्तु इसके कहने से मुझे ज्ञान प्राप्त हो गया था कि बहुत गई, थोड़ी सी आयु रह गई। राजा ने राजकुमार से पूछा तो वह बोला–पिताश्री आप मुझे जब खर्च नहीं देते थे, इस कारण मैंने सोचा था कि आपकी हत्या करके स्वयं राजा बन जाऊ परन्तु इससे मुझे ज्ञान प्राप्त हुआ। इस कारण मैंने इसे अंगूठी दे दी। अब राजा ने राजकुमारी से पूछा तो वह बोली कि मेरी शादी की उम्र बीती जा रही है परन्तु आप मेरा विवाह ही नहीं कर रहे हैं। अत: मैंने भी आपको मृत्यु के घाट उतारने की सोची परन्तु इस दोहे से मुझे ज्ञान प्राप्त हुआ है कि पितृ हत्या पाप है। इसने मुझे पाप करने से बचाया । इसलिए मैंने इनाम में इसे अपने गले का हार भेंट कर दिया। ‘ राजा को ज्ञान प्राप्त हुआ और कंजूसी को छोड़कर उसने भी नट को बहुत सा इनाम दिया। 
Load More Related Articles
Load More By amitgupta
  • राग बिलाप-२७अब मैं भूली गुरु तोहार बतिया,डगर बताब मोहि दीजै न हो। टेकमानुष तन का पाय के रे…
  • राग परजा-२५अब हम वह तो कुल उजियारी। टेकपांच पुत्र तो उदू के खाये, ननद खाइ गई चारी।पास परोस…
  • शब्द-२६ जो लिखवे अधम को ज्ञान। टेकसाधु संगति कबहु के कीन्हा,दया धरम कबहू न कीन्हा,करजा काढ…
Load More In Uncategorized

Leave a Reply

Check Also

What is Account Master & How to Create Modify and Delete

What is Account Master & How to Create Modify and Delete Administration > Masters &…