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“जैसागुरु वैसा चेला”

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 एक वैश्य का बेटा यद्यपि शिक्षित था परन्तु धन के अभाव में उसकी शादी नहीं हो पायी थी। एक धर्मान्ध् व्यक्ति ने इस शर्त पर उसे अपनी बेटी देनी स्वीकार की कि वह अपना धर्म छोड़कर उसका धर्म स्वीकार कर ले। बेचारे वैश्य पुत्र ने उसकी बात मान ली। सबसे पहले गुरु मंत्र लेने की बात तय हुईं। नव युवक तैयार था परन्तु गुरुदेव कहीं बाहर गये हुए थे। इसलिए लाचार होना पड़ा। ब्याह के दिन गुरुदेव पधारे। विवाह की रस्में चालू थीं। ससुर ने पाणिग्रहण का कार्य गुरुजी के हाथों से सम्पन्न कराया। इसके पश्चात्‌ उसने गुरुजी से कहा–दामाद को कंठी पहनाकर गुरुमंत्र दे दीजिए। 
| गुरुजी ने दूसरे दिन का वायदा किया। दूसरे दिन दामाद ने उपवास रखा और स्नान कर गुरुजी के पास गया | गुरुजी ने उसके कान में कुछ कह दिया । जमाई शिक्षित था । इसलिए उसे ठगा नहीं जा सकता था। उसने पूछा–इस मंत्र से क्या लाभ होगा। गुरुजी ने उत्तर दिया–तुम्हें स्वर्ग की प्राष्टि होगी। दामाद को यह बात सहन नहीं हुई। अतः उसने गुरुर्ज’ के कान में कहा-महाराज! मैंने आपको अहमदाबाद, मुम्बः और दिल्‍ली तीनों दे दीं। इससे गुरुजी क्रोध में भरकर बोले-हराम खोर! मुम्बई और दिल्‍ली कया तेरे बाप की है? जमाई राजा बोले–तो क्‍या बैकुंठ और कैलाश आपकी बपोर्त है? यह सुनकर वहाँ पर बैठे सब लोग जोर-जोर से हँसलगे और गुरुजी शर्मसार हो गये। 
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