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कुल्हाड़ी और लकड़ी

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एक बार कुल्हाड़ी राम और लकड़ी राम आपस में लड़ने  लगे। कुल्हाड़ी राम बहुत अधिक क्रुद्ध थे। उन्होंने लकड़ी राम  से कहा- संभलो में इसी समय तुम्हें काटकर टुकड़े-टुकड़े किये देता हूँ। यह सुनकर लकड़ी राम ने हँसकर कहा-तुम व्यर्थ में नाराज हो रहे हो। मेरे बिना तुम्हारा काम नहीं चल सकता। मैं बेंत के रूप में तुम्हारे पीछे न लगा रहूँ तो तुम कुछ भी काम नहीं कर सकते। इस बात का ध्यान रखना। 
इससे कुल्हाड़ी राम समझ गया और कुछ नरम पड़  गया। अब वे दोनों आपस में मिल जुल कर रहने लगे। 
इस संसार में स्त्री-पुरुष का सम्बन्ध भी कुल्हाड़ी राम और लकड़ी राम के समान ही है। इसलिए दोनों को मिलजुल कर रहना चाहिए। यदि लकड़ी राम रूपिणी स्त्री-पुरुष के पीछे हो तो सब कार्यों में पूरी सहायता मिलती है। नहीं तो अकेला पुरुष कुल्हाड़ी राम की तरह क्या कर सकता है? दोनों आपस में मिलजुल कर एक राय बनाकर रहें तो कोई कमी नहीं पड़ सकती। 
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