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“किसी मन्दिर में जा कथा मत सुनना”

“किसी मन्दिर में जा कथा मत सुनना”

एक नगर के अन्तिम छोर पर चोरों के दस बीस घर थे। एक वृद्ध चोर के पाँच पुत्र थे। वह अपने पुत्रों को प्रतिदिन उपदेश दिया करता था। एक दिन उस वृद्ध की मृत्यु हो गई। उसके बड़े बेटे ने सोचा कि आज रात को राजा के महल में चोरी करनी चाहिए। 
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जब वह रात के समय नगर में प्रवेश करने लगा तो रास्ते में एक जगह कथा हो रही थी। कथा वाचक उच्च स्वर में कथा सुना रहा था और श्रोतागण आनन्द मग्न होकर कथा का आनन्द ले रहे थे। चोर ने सोचा कि पिता का उपदेश था कि जहाँ कथा हो रही हो वहाँ नहीं जाना चाहिए।  मेरे रास्ते में तो कथा हो रही है। अब मैं यहाँ से कैसे निकलू मुझे कुछ ऐसा उपाय सोचना चाहिए कि जिससे मेरे कानों में कथा के शब्द न पड़ें। उसने अपनी रूई की बण्डी में से थोड़ी सी रूई निकाली और दोनों कानों में ठूंस ली ।
 अब वह कथा के बीच में से होकर निकलने लगा। जब वह कथा के निकट पहुँचा तो उसके एक कान में से रूई का फाहा निकल गया। उधर पंडितजी कथा में बता रहे थे कि देवताओं की परछाई नहीं होती तथा उनके पैर भी पृथ्वी पर नहीं पड़ते। यह बात उस चोर के कान में भी पड़ गई। वह राजा के महल में चोरी करने में सफल रहा। उसने घर आकर चोरी के माल को जमीन के अन्दर गाढ़ दिया। सवेरा होने पर राजा को ज्ञात हुआ कि महल में चोरी हो गई है। राजा ने चोर को पकड़ने का सिपाहियों को आदेश दिया, परन्तु सिपाहियों को चोर का पता नहीं चला।
 इस पर राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि तुम भेष बदल कर चोर का पता लगाओ । मंत्री ने काली देवी का भेष बनाकर वह उस स्थान पर गया जहाँ चोर रहते थे। वह बालों को खोलकर  तथा हाथ में खप्पर लेकर आधी रात को चोरों के रहने के स्थान पर गया। वह उनके रहने के स्थान पर पहुँचकर कहने लगा- काली माई की पेट पूजा को लाओ। आज हमारी सब दिनों की भेंट देओ नहीं तो मैं सबका सर्वनाश कर दूंगी ।
काली के क्रोध से डरकर सब चोर अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए और हाथ जोड़कर बोले-हे माता! तुम्हारी भेंट पूजा हम कल अवश्य प्रदान करेंगे। इतने में वृद्ध चोर के बेटे को कथा से सुनी बात स्मरण हो आयी। वह अन्दर गया और एक जलता हुआ दीपक ले आया। काली माई के पास जाकर उसने देखा कि उस काली माई की परछाई दिखाई दे रही है। उसने यह भी देखा कि उसके पैर भी पृथ्वी पर पड़ रहे हैं। वह समझ गया कि यह कोई देवीदेवता नहीं है अपितु देवी के भेष में कोई ठग है। वह लाठी लेकर काली को मारने दौड़ा । यह देखकर काली माई वहाँ से भाग गई। 
काली माई के भाग जाने पर उस चोर ने विचार किया कि मैंने कथा में केवल दो ही बातें सुनी थीं और उन्हीं दो बातों ने हमारी जान बचाई और माल भी बच गया । इससे यह पता चलता है कि यदि हम सब नित्य प्रति सत्संग एवं कथा में भाग लिया करें तो इस बुरे कर्म का बहुत ही शीघ्र त्याग कर सकते हैं। इससे हमें महान फल की प्राप्ति हो जायेगी। 
ऐसा विचार कर सब चोरों ने उसी वक्त से चोरी करने का कार्य बन्द कर दिया। वे सब लोग प्रतिदिन कथा, कीर्तन, सत्संग में भाग लेने लगे। थोड़े से ही दिनों में वे सब चोर धर्मात्मा बन गये। अपनी मेहनत से कमाई कर अन्त में वे सब स्वर्ग को प्राप्त हुए। 
भाइयों! वास्तव में कथा, कीर्तन, सत्संग और सत्पुरुषों का उपदेश ही मानव समाज के लिए हितकर है।इसलिए समय निकालकर हम सब नर-नारियों को सत्संग में जाकर लाभ उठाना चाहिए। 
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