कबीर राग पीलू दालचन्द्र १३२
सन्तो भूल भेद कुछ न्यारा,
कोई बिरला जानर।
मूड़ मुड़ाया भयो कह धार,
जटा बढ़ाय भए संन्यासी ।
सन्तो भूल भेद कुछ न्यारा,
कोई बिरला जानर।
मूड़ मुड़ाया भयो कह धार,
जटा बढ़ाय भए संन्यासी ।
काह भयो पशु सम नग्न फिरे,
वन अंग लगाये छोरा।
शीतल जल क्षुधा तृष्णा सहित,
अजगर खेल पसारा।
वन अंग लगाये छोरा।
शीतल जल क्षुधा तृष्णा सहित,
अजगर खेल पसारा।
धोबी ये बस चले नहीं कुछ,
गदहा काहे बिगारा।
योग यज्ञ जप तप समय व्रत,
किया कर्म विस्तारा।
तीरथ मूरति सेवा पूजा,
ये उर दे व्यवहारा।
हरि हर ब्रज खोजत हारे,
धरि धरि जग अवतारा।
पोथी पत्रा में क्या ढूंढे,
किया कर्म विस्तारा।
तीरथ मूरति सेवा पूजा,
ये उर दे व्यवहारा।
हरि हर ब्रज खोजत हारे,
धरि धरि जग अवतारा।
पोथी पत्रा में क्या ढूंढे,
वेद नेत कह हारा।
बिन गुरु भक्ति वेद नहीं पावै,
भारम भरे संसारा।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
मानो कह हमारा।
कर्ण के सूत कतवाहू,
निशदिन भया रहा मंझारा।
बिन गुरु भक्ति वेद नहीं पावै,
भारम भरे संसारा।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
मानो कह हमारा।
कर्ण के सूत कतवाहू,
निशदिन भया रहा मंझारा।