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कबीर भजन १६१

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कबीर भजन १६१
दिवाने बन्दे को तेरा साथी। टेक
जैसे बूंद ओस के मोती ऐसे काया जाती,
तन में मनवां न्यारे हुए हैं,
काया जैसे, माटी। 
खाय ले पीय ले दे ले ले ले,
यही बात है आदी। 
दिना चार साहब का भज ले,
कहा बांधेगी कहा.
भाई बन्धु सव कुटुम्ब कबीला,
और क्या बेटा क्या नाती।
यह तुम्हारे कोई काम आए,
चित को हे हैं रोटी।
चार जने मिलि लैक चलिहैं,
ऊपर चादर तानौ ।
कहत कहत कबीर सुनो भाई सन्तों,
सतगुरु कहिगु बानी।
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