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कबीर भजन १५८

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कबीर भजन १५८
ठगनी क्या नैना चमकाए। टेक
कदबू काट मृदंग बनाया नींबू काट मजीरा।
पांच तरोई मंगल गावे नाचत बालम खीरा।
रूपा पहिर के रूप दिखावे,
सोना पहिर तरसावे।
गले डाल तुलसी की माला,
तीन लोक भरमावे।
मेस पदमिनी आशिक चीन्हा,
मेंढक ताल लगाये।
छप्पर चढ़िके गदहा नाचे,
ऊंट विष्णु पद गावे ।
आम डार चढ़ि कछुवा,
तोड़ गिलहरी चुन-चुन लावे।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
बगुला भोग लगावे। 
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