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कबीर भजन १५५

कबीर भजन १५५
करी रे मनुवा वा दिन की तदवीर। टेक
भवसागर एक नदी अगम है जल वाड़े गम्भीर।
गहरी नदियां नाव पुरानी खेवन हारी बेपीर।
लट लटकाए तरिया रोये मात पिता सुर बीर 
माल खजाना कौन चलाए साथ न जात शरीर।
जब यमराज आनि घेरिए तनिक धरे न धीर ।
मार के सोठा प्राण निकाले नयन न बहिये नीर।
न्याय धर्म से खंभ में बांध व्याकुल होय शरीर ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
फिर न करेंगे तकरीर ।
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