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कबीर भजन १३७

कबीर भजन १३७

जग प्यारी अब की नामी बरन गई,
वा दिन काहे को खोवे। टेक
जब जागा तो मानिक पाया,
तै बौरी सब कोई गंवाया।
पिय तेरे चतुर त मूरख नारी,
कबहू न पिय की सेज संवारी।
ते बौर बोरापन कीनों,
भर जीवन पर अपना नहीं चीन्हों।
जामु देखे पिय सेजन पर,
तोहि छोड़ि उठ गए सबेरे।
कहै कबीर जो घर जागे,
शब्द बाण उर अन्तर लागे।

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