Home Uncategorized कबीर भजन ११८

कबीर भजन ११८

0 second read
0
0
52
कबीर भजन ११८
अब गढ़ फिर गई राम दुसाई। टेक
कहत मन्दोदरी सन पिया रावण,
को न कुमति भरमाई।
ओछी बुद्धि कर्म तुम कीनों,
तिरिया हरी पराई ।
कंचन कोटि देख मत भूलो,
और समुद्र अस खाई ।
पवन के पुत्र महा बलदाई,
छिन में लंका जराई ।
कहे रावण दश मस्तक,
मेरे कुम्भकर्ण बलदाई ।
सहस्र सुभट मेरे रखवाले,
क्या करे दोऊ भाई ।
जो रावण तुम हरि से मिलते,
देते अयोध्या पठाई |
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
लंका विभीषण पाई। 
Load More Related Articles
Load More By amitgupta
  • राग बिलाप-२७अब मैं भूली गुरु तोहार बतिया,डगर बताब मोहि दीजै न हो। टेकमानुष तन का पाय के रे…
  • राग परजा-२५अब हम वह तो कुल उजियारी। टेकपांच पुत्र तो उदू के खाये, ननद खाइ गई चारी।पास परोस…
  • शब्द-२६ जो लिखवे अधम को ज्ञान। टेकसाधु संगति कबहु के कीन्हा,दया धरम कबहू न कीन्हा,करजा काढ…
Load More In Uncategorized

Leave a Reply

Check Also

What is Account Master & How to Create Modify and Delete

What is Account Master & How to Create Modify and Delete Administration > Masters &…