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कबीर भजन १०६

कबीर भजन १०६
नर तुम काहे की माया जोरी। टेक
कौड़ी-२ माया जोरी कीन्हे लक्ष करोरी
जब खर्चन की बेरी आई रह गए हाथ सकोरा
हाथी लाये घोड़ा लाए लाए सैन बटोरी
अन्त समय कुछ काम न आवे रहे काठ की घोरी।
जब उतरे गंगा घाट पे कपड़ा लीना छोरी
भ्राता पुत्र विमुख हो बैठे फूंक दीन जैसे होरी
देंगे दूत दान दुख भारी हाथ पैर सब तोरी
कहै कबीर सुनो भाई साधो डारि नरक भी बोरी
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