योगी या विभि मन को लगावें। टेक
जैसे नटनी चढ़े बांस पर,
नटवा ढोल बजावें ॥
सारा बोझ बांस सिर ऊपर,
सुरत बासे बाँधे
जैसे सखी जाय पनघट पर,
सिर धरि गागरि लावै
सखियां संग सूरति गगारि में,
अम्बर चिर नहि जाये ।
जैसे लोहार कूटत लोहे को,
अइसण फूंक लगावे।
ऐसो चोर लगे घट अन्दर,
माया रह न पाये।
जाग सुगति से आसन मारे,
उलटी पवन चलाये।
कष्ट आपदा सबही संहारे,
नजर से नजर मिलाये।
जैसे मकरी तार अपनी,
उलटि-पुलटि चढ़ जाये ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
वाहि में उलटि समझा।