Home Uncategorized कबीर भजन राग बागेश्वरी १३५

कबीर भजन राग बागेश्वरी १३५

0 second read
0
0
86
कबीर भजन राग बागेश्वरी १३५
सन्तो ! जीवित ही करूं आशा। टेक
ये मुक्ति गुरु कहे स्वास्थ,
मंडी दैविश्वासा !
जीवित समझे जीवित बूझे,
जियत होत भ्रम नाशा ।
जियत जो भये मिले तेहि,
है मुक्ति निवासा ।
मन हो बन्धर मन ही से मुक्ति,
मन ही सकल बिन साया।
जो मन भयो जित वश में नहीं,
तो दैवे बहुचासा।
जो अब है सो तबहूं मिलिहैं,
जा सपने जग भाषा।
जहां आशा तहां यासा होवे,
मन का यही तमाशा ।
जीवन होय दया सतगुरु की,
घट में ज्ञान प्रकाशा ।
कहै कबीर मुक्ति तुम पाषा,
जीवन हौ धरम दासा । 
Load More Related Articles
Load More By amitgupta
  • राग बिलाप-२७अब मैं भूली गुरु तोहार बतिया,डगर बताब मोहि दीजै न हो। टेकमानुष तन का पाय के रे…
  • राग परजा-२५अब हम वह तो कुल उजियारी। टेकपांच पुत्र तो उदू के खाये, ननद खाइ गई चारी।पास परोस…
  • शब्द-२६ जो लिखवे अधम को ज्ञान। टेकसाधु संगति कबहु के कीन्हा,दया धरम कबहू न कीन्हा,करजा काढ…
Load More In Uncategorized

Leave a Reply

Check Also

What is Account Master & How to Create Modify and Delete

What is Account Master & How to Create Modify and Delete Administration > Masters &…