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कबीर भजन गजल-१०७

कबीर भजन गजल-१०७
कौन कहता है कि जालिम उमर भर रोता नहीं
नेक कर्मों का कहो क्या नेक फल होता नहीं
ला सकेगा वो कहां से मुख से खाने को घान
जो कोई किसान अपने खेत बोता नहीं
छल कपट के जोर से करता है जो धन को जमा
कुछ दिनों में क्या वो सब जड़ मूल से खाता
जो कोई करता है नाहक कोर एक से दुश्मनी
वह कभी दुनिया में सुख से नींद सोता नहीं
पाप कितने हैं कमाये अपनी सारी उम्र भर
नरक में जाके वो क्या पछता के फिर रोता नहीं,
देव दुर्लभ पाके मन जो व्यर्थ खोता है कबीर
क्या वो फिर खाएगा भव सिन्धु में गोता नहीं
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