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कबीर भजन काया कल्प ११५

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कबीर भजन काया कल्प ११५

अवधू- अन्धा धन्य अन्धियारा, कोई जानेगा जानन हारा। टेक
या घट भीतर बन अरु बस्ती यहीं में झाड़ पहारा,
या जग भीतर बाग बगीचा वाही में सीचन हारा।
या घट भीतर सोना चांदी याही में लगा बजारा,
वा घट भीतर हीरा मोती याही में परखन हारा
या घट भीतर सात समुन्दर याही में नदिया नारा
या घट भीतर सूरज चन्दा याही में नौ लख तारा।
या घट भीतर बिजली चमके याही में होय उजियारा,
या घट भीतर अनहद गरजे बरसे अमृत धारा।
या घट भीतर देवी देवता याही में ठाकुर द्वारा,
या घट भीतर काशी मथुरा याही में गढ़ नीरनारा।
या घट भीतर ब्रह्मा विष्णु शिव सनकादि उपारा।
या घट भीतर ऋद्धि सिद्धि के भरे अटक भंडारा।
या घट तीन लोक है याही में करतारा,
कहै कबीर सुनो भाई साधो वाही गुरु हमारा।

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