कबीर भजन अध्यात्मक ज्ञान ११४
बागों में मति जा तेरी काया गुलजार। टेक
करना क्वारी योग के रखू रखबार,
कष्ट के कान उड़ाय के देखो अजब बहार।
मन मलीन पराबोधिये करि संयम की बाद,
दया वृक्ष सूखे नहीं सीच क्षमा जल ढार।
गुल क्यारी के बीच में फूल रहा कचनार,
खिला गुलाबी अजब रंग फूल गुलाब की डार।
अष्ट कमल से होत है लीला अगम अपार,
कहै, कबीर चित चेत के आवागमन निवार।
बागों में मति जा तेरी काया गुलजार। टेक
करना क्वारी योग के रखू रखबार,
कष्ट के कान उड़ाय के देखो अजब बहार।
मन मलीन पराबोधिये करि संयम की बाद,
दया वृक्ष सूखे नहीं सीच क्षमा जल ढार।
गुल क्यारी के बीच में फूल रहा कचनार,
खिला गुलाबी अजब रंग फूल गुलाब की डार।
अष्ट कमल से होत है लीला अगम अपार,
कहै, कबीर चित चेत के आवागमन निवार।