कबीर गजल विषयों से त्याग का १०५
जब तलक साधक बिचारा सत्य सुख पाता नहीं।
जो नहीं ये काम कर सकता है अपनी वृत्तियां ।
उसको अपने में भी परमात्मा नजर आता है।
क्या हुआ वेदों के पढ़ने से न पाता भेद कुछ।
आत्मा जाने बिना ज्ञानी तो कहलाता नहीं।
नात पाप कर्मों से सदा रहता है किसका ध्यान से।
उसका सदउपदेश यह हरगिज हृदय भाता नहीं।
इनको सुनो जो कह रहे जै कबीर।
है बिना सतगुरु ले कोई मुक्ति का दाता नहीं।
जब तलक साधक बिचारा सत्य सुख पाता नहीं।
जो नहीं ये काम कर सकता है अपनी वृत्तियां ।
उसको अपने में भी परमात्मा नजर आता है।
क्या हुआ वेदों के पढ़ने से न पाता भेद कुछ।
आत्मा जाने बिना ज्ञानी तो कहलाता नहीं।
नात पाप कर्मों से सदा रहता है किसका ध्यान से।
उसका सदउपदेश यह हरगिज हृदय भाता नहीं।
इनको सुनो जो कह रहे जै कबीर।
है बिना सतगुरु ले कोई मुक्ति का दाता नहीं।