“उनकी सबने प्रीति है”
ज्ञानवान जो पुरुष हैं, उनकी है यह रीति।
सज्जन दुर्जन से सदा, करते हैं वह प्रीति॥
एक तपस्वी महात्मा एक बार नाव में बैठकर गंगा नदी को पार कर रहे थे। उस नौका में और भी बहुत से लोग सवार थे। उस नाव में एक बदमाश व्यक्ति भी था । जब नाव चल पड़ी तो उस बदमाश व्यक्ति ने महात्मा जी से हसी मजाक करना शुरू कर दिया। परन्तु महात्मा जी ने उसकी किसी भी बात का उत्तर नहीं दिया। हँसी मजाक करते करते वह बदमाश महात्माजी को पीटने लगा। इससे महात्माजी के सिर से रक्त बहने लगा। इतने में आकाश वाणी हुई।
आकाशवाणी ने महात्मा जी से कहा- यदि आपकी आज्ञा हो तो इस नाव को डुबो दिया जाये। महात्माजी एक ज्ञानी व्यक्ति थे। उन्होंने कहा-मैं नहीं चाहता कि मेरे साथ बेकसूर लोगों को हानि पहुचे। आकाश वाणी ने फिर कहा- तो फिर इस बदमाश को डुबो दिया जाये। आकाश वाणी ने तीसरी बार फिर कहा-कुछ तो न्याय होना चाहिए। महात्मा जी बोले- इसकी बुद्धि धर्म में हो जाये, मैं यही चाहता हूँ। इतना सुनते ही उस बदमाश की बुद्धि धर्ममय हो गई। अब वह बदमाश महात्मा जी के चरणों में गिरकर अपनी भूल के लिए क्षमा मांगने लगा।
भाइयों! जो व्यक्ति ज्ञानवान और वैराग्यवान होते हैं वे कभी भी किसी का बुरा नहीं चाहते। वे तो हमेशा प्राणीमात्र की भलाई में ही लगे रहते हैं।