| “अकबर और गाय”!
न् एक बार की बात है कि बादशाह अकबर शिकार खेल कर लौट रहे थे। गौ धुलि की बेला होने के कारण गायें चर कर लौट रही थीं। बादशाह गौओं के झुण्ड में फँस गये। कुछ गायें भड़क गयीं और कुछ गायें मुँह में चारा लिये कानों को खड़ा करके उनकी ओर निहारने लगीं। यह देखकर अकबर ने बीरबल से कहा–गौएँ मेरी ओर क्यों ताक रही हैं? समय और वाणी का सदुपयोग करने में निपुण बीरबल बोला–हुजूर! ये गौएँ मुँह में चारा लेकर सरकार से विनती कर रही हैं कि हुजूर ने हमारे चरने के जंगलों पर टैक्स लगवा कर हमें बेहाल कर दिया । आपकी मुस्लिम अमलदारी में कसाई निर्भय होकर हमारे गले पर छुरी चला रहे हैं। इसका आपसे ये कारण पूछ रही हैं।
हमने किसी का कुछ बिगाड़ा भी नहीं है। हम घास खाकर जीवन निर्वाह करती हैं। हममें हिन्दू मुसलमान का कोई भेद-भाव नहीं है। हमने हिन्दुओं को मीठा और मुसलमानों को खास दूध कभी नहीं दिया । हम तो दोनों धर्मों के आदमियों को अमृत के समान मीठा दूध देती हैं। हमारे मरने के बाद हमारा चमड़ा भी जूता बनकर दोनों सम्प्रदायों के पैर को बराबर लाभ पहुँचाता है। अतएव हम कान रूपी हाथ जोड़कर मुँह में तृत लेकर आपसे यह जानना चाहती हैं कि किस अपराध से ईद के त्यौहार पर हमें कत्ल क्यों किया जाता है? ये वाक्य सुनकर बादशाह अकबर ने हुक्म दिया कि हमारे राज्य के कसाई खाने बन्द कर दिये जायें और ईद के त्यौहार पर जो मुसलमान गौ वध करेगा, उसे कठोर सजा दी जायेगी।