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कबीर भजन १३७

कबीर भजन १३७ जग प्यारी अब की नामी बरन गई,वा दिन काहे को खोवे। टेकजब जागा तो मानिक पाया,तै बौरी

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कबीर भजन १३८

कबीर भजन १३८साधो भाई हरि को मैंने देखा। टेकअपने माल और आप खजाना,आपहि खर्चन वाला। आप गली में भिक्षा मांगे,हाथ में

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कबीर भजन १३६

कबीर भजन १३६सन्तो ! सतगुरु भक्ति अनी।नारी एक पुरुष दुई जाये, गूढ़ पण्डित ज्ञानी।पर्वत ओर गंगा गक निकली चहुंदिश पानी

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कबीर भजन १३०

कबीर भजन १३० भजु मन जीवन नाम सवेरा टेकसुन्दर देह देख निज भूलो, झपट लेतया देही का गर्व न कीजै,

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कबीर भजन १४०

कबीर  भजन १४० संतो। बोले जग मारे।  अनबोले कैसे बनि बिरहै।  शब्दाहि कोई न विचारे ।  पहले जन्म पूत भयऊ।बाप

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1जर।है।हतृष्णा के बस फिरयो दिवाना,भाव शरण पर नहीं जाना,छसो मति का होना रे। हेसब खेल गंवाया,लापनतरुण भयो लखि त्रिया ललचायो।वृद्धि

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