Kabir ke Shabd
या दुनिया ऊत कसूत, देखो।
पाँच तत्व का पुतला पुजै,यो एक तत्व का भूत।।
मन्दिर जावै मस्जिद जावै,पपत्थर पे माथा फ़ूडवावै।
बाहर देव मनावै, घर में हो रहा जुतमजूत।।
भाड़ा लावै गंगा न्हावै, टूम ठेकरी खो कर आवै।
फेर चिल्लावै बाकी पूंजी,पंडा ने ली लूट।।
आग जलावै हवन करावै, बात-२ के फंड रचवावै।
मुँह ने बावैं खूब सेवड़े, मल के राख भभूत।।
कोय न टोकै मूधा होकै, एक तत्व का पित्र धोकै।
झूठे आँसू रो के कहते, दादा बडग्या भूत।।
हाथ दिखावै राशि टोहवै, नक्षत्र ओर गृह ने रोवै।
खुद ही होवै दूर कर्म से, करकै ये करतूत।।
सद्गुरु कंवर साहिब की शरणां, हरिकेश तुम बैठो चरणां।
लाकै सत्संग झरना तेरै, पाखण्ड जांगे छूट।।