Kabir ke Shabd
तेरो दोजख दोष मिटाले।
इब मन हर भज आनन्द पाले हो जी।।
हरिनाम तत्वसार जगत में, उर बिच खूब रमाले।
हो अनरोग रोग नहीं व्यापै, सूरत नाम पे ला ले।।
पाँचू प्राण एक घर ला, फेर त्रिगुण तार मिला ले।
प्राणायाम की योग युक्ति से, सांसा चक्र सुलझाले।।
गंगा यमुना बहे सुरस्ती, घाट सुखमना न्हा ले।
तीनों धारा बहे इकसारा, गुरुमुख गौते ला ले।।
जो कोए भेदी मिले अगम का, उन संग भेद मिलालें।
भेदी न बकवादी मिलजा, उनसे चुप लगाले।।
बनो सुरमा हिम्मत मत हारे, जीवादास परखाले।
हद की बाज़ी छोड़ दे मनवा बेहद नगर बसाले।।