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taj duniya ki preet peev ghar chal re

kabir

Kabir ke Shabd

तज दुनिया की प्रीत, पीव घर चाल रे।
जग देखा झाड़ पिछोड, यहां नहीं लाल रे।।
सुख सागर का हंस, के विरला कोय रे।
हम से छानी नाय, जो वहां का होए ते।
हंस समुद्र छोड़ तलाब नहीं जायसी।
बहु बुगला की डार डोभिया पावसी।।
मलयागिरि का वृक्ष के वन वन नाय रे।
आक ढाक बम्बूल, जगत वन मायं रे।।
मनिधारी कोय सन्त, शिरोमणि अंग हैं।
विष के भरे भुजंग, सो कीट पतंग हैं।।
अनल पंख की सेज, गगन आकाश है।
पँछी कई हज़ार, के हद्द में वास है।।
कुकर काग अनेक, मिलेंगे आए रे।
अरब खरब में एक महल को जाय रे।।
स्वामी गुमानी दास, कह समझाय रे।
नित्यानन्द हो नूर में नूर समाय रे।।
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