Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
कोय कहियो रे गुरू आवन की।
आवन की मन भावन की।।
आप नहीं आवैं लिख नहीं भेजें।
बाण पड़ी रे ललचावन की।।
ये दो नैन कहा नहीं मानैं।
नदियां बहे रे जैसे सावन की।।
के करूँ मैं मेरा वश नहीं चलता,
पंख नहीं रे उड़ जावन की।।
मीरा के पृभु कब रे मिलोगे,
चेरी भी मैं थारे चरणों की।।