Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
पड़ेअविद्या में सोनेवालों, खुलेंगीतुम्हारी आंखें कबतक।
सद्गुरुकीशरणमें आनेकीकरोगेअपनी, तैयारी कबतक।।
गया ना बचपन वो खेल बिन है, चढ़ी ये जवानी चार दिन है।
समय बुढापे का फिर कठिन है रहोगे ऐसे अनाड़ी कबतक ।।
अजबोटारी है चित्र सारी, मिली है मनोहर तुमको नारी।
बढ़ी है दौलत की जो खुमारी, रहेंगी ये ऐसी सारी कबतक।।
जो यज्ञ आदिक कर्म हैं नाना,फल है सभी का,स्वर्ग सुख पाना।
मिठे ना इन से है आनाजाना सबके संकट ये भारी कबतक।।
कबीर तो कहते हैं ये पुकारी, मगर तुमको है अख्तियारी।
सुनो अगर ना सुनो हमारी, बनोगे सच्चे विचारी कबतक।।