Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
नमो नमो म्हारे गुरुदेव को,सच्चे गुरु कै लागूं पांए।
बलिहारी म्हारे सतगुरु जी की,जिसने मार्ग दियो बताय
निर्भय हो संतां में रहना।।
चुग-२ कंकर महल चिनाया, ढूंघी दीन्ही नीव धराय।
घड़ी पलक का बेरा कोन्या, बेरा ना टांडा कद लदजा
पांच पचीस का बना चरखला, त्रिगुण माला दई चढा।
मैं घसियारी सतनाम की, फिरूँ तार गगन में जाए।।
नो मन सूत उलझा घट भीतर, सदगुरु मिलजा, दें सुलझाए।
उल्टा नीर थाह नहीं पावे, सतगुरु बिना तरा न जाए।।
जिस काया में रांड कलिहारी,वा रह नित की जंग मचाए
एक पड़ोसन नित उठ झगड़े, उसने लावे कौन मनाए।।
सतलोक में मेवा लाग रही, या मेवा कोए विरला खाए।
भानिनाथ अमरफल खाया, आवगमन की शंका नाए।।