Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
मन रे अब की बार सम्भारो।
जन्म अनेक दगा में खोयो, बिन गुरु बाजी हारो।।
बालपने ज्ञान नहीं तन में, जब जन्मों तब बारो।
तरुणाई सुख बास में खोयो, बाजो कूच नगारो।।
सुत दारा मतलब के साथी, जिन को कहत हमारो।
तीन लोक और चौदह भुवन, सब ही काल को चारों।।
पूर रह्यो जगदीश गुरु तन, वासे रह्यो न्यारो।
कह कबीर सुनो भई साधो, सब घट देखन हारो।।