Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
हंसा भाई हंस मिले हंसा होइ।
जब लग चाल चलै बुगलां की, हंस कह न कोई।।
पांच नाम भँवसागर कहिये इनतैं न मुक्ति होइ।
ये ज्ञान मिले सत्संग में, फिर सोहंग सा होइ।।
जो हंसा तनै प्यास नीर की, कूप नीर न होई।
ये तो नीर सकल ममता का, इसको तज हंसा होई।।
ये तो नीर सकल ममता का, इसको तज हंसा होई।।
योद्धा लोक बसै है योद्धा,बैठा मानस रोइ।
शब्द बीच करो चलो हंस राजा, काल रहै सिर रोइ।।
शब्द बीच करो चलो हंस राजा, काल रहै सिर रोइ।।
सत्त सूरत की भीख मांगले,अमर पटा लिखवाई।
कह कबीर सुनो भई साधो, फिर कोय धोखा नाहीं।।
कह कबीर सुनो भई साधो, फिर कोय धोखा नाहीं।।