Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
गुरु की लाडली हे तुं, क्यों न प्रेम बढ़ावै।
बिना प्रेम ना साहिब मिलते, न्यू ए धक्के खावै।।
चार गली घर एक है, रस्ता ना पावै।
कठिन मार्ग है सतगुरु का,कोए विरला ए जान पावै।।
कठिन मार्ग है सतगुरु का,कोए विरला ए जान पावै।।
वचन गुरु का मान कै नै, मन को साफ बनावै।
सांस-२ में सिमरन करले, जो तुं मिलना चाहवै।।
सांस-२ में सिमरन करले, जो तुं मिलना चाहवै।।
तन मन धन सब अर्पण करके,चरणां शीश झुकावै।
जन्म-२ के पाप है तेरे, सतगुरु काट बगावै।।
जन्म-२ के पाप है तेरे, सतगुरु काट बगावै।।
इड़ा पिंगला छोड़ के नै, सुखमना घर आवै।
कह मीरा रविदास की चेली,गुरु मिले सुख पावै।।
कह मीरा रविदास की चेली,गुरु मिले सुख पावै।।