Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
गढ़ चेतन चढ़ देख ले, अपने पिया का रोग।।
चेतावनी चित्त लागी रहे, या गति लखै न कोय।
अगम पंथ के महल में हे, अनहद वाणी होए।।
नाम नयन में रम रहा हे, जानै विरला कोय।
जिसने सतगुरु मिल गया हे, ता को मालूम होय।।
जिसने सतगुरु मिल गया हे, ता को मालूम होय।।
झंडा रोप्या ग़ैब का हे, दो पर्वत की ओट।
साधु के जानै शब्द को हे, दृष्टि करै बन्द।।
साधु के जानै शब्द को हे, दृष्टि करै बन्द।।
झलकै ज्योति झिलमिला हे, बिन बाती बिना तेल।
चहुदिश सूरज उगिया हे, ऐसा अजब ये खेल।।
चहुदिश सूरज उगिया हे, ऐसा अजब ये खेल।।
जबतक रोगी रहत है रे सत्त मत गैर गम्भीर।
अजर नाम बिन सै नहीं रे, सोहंग सत्त कबीर।।
अजर नाम बिन सै नहीं रे, सोहंग सत्त कबीर।।