Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
अविनासी अविनासी मनै तो तेरे,
नाम का भरोसा अविनासी।
जंतर ना जानूँ दाता मन्त्र ना जानूँ,
नहीं पढ़ा कदे कांसी।
इस दुनिया में दाता भाव नहीं है जी,
काटो यमां की फांसी।।
काटो यमां की फांसी।।
हम दासों की रखना लाज जगत में,
मतना कराइयो म्हारी हांसी।।
मतना कराइयो म्हारी हांसी।।
धर्म किया न कोए कर्म बनाया,
साधु हुआ ना सन्यासी।।
साधु हुआ ना सन्यासी।।
ऊंचे-२ पर्वत दाता भींचवां सी घाटी,
सन्त कोए विरला जन जासी।।
सन्त कोए विरला जन जासी।।
जीता के सतगुरु घीसा कहावे,
अगमपुरी के वासी।।
अगमपुरी के वासी।।