Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
अमल निज नाम का मेरे दाता, पूरा बिन ना समाय।
बर्तन छोटा सा मेरे दाता, वस्तु घनेरी जी।
उबल उबल बह जाए।।
आपै पियो मेरे दाता आप पिलाओ जी।
आप ही रहे हो पचाए।।
आप ही रहे हो पचाए।।
जिन जिन पिया मेरे दाता, जुग जुग जिया जी।
लिया आवागमन निसाए।।
लिया आवागमन निसाए।।
घिसा सन्त अमली निज नाम के जी।
जीता को रहे हैं पिलाए।।
जीता को रहे हैं पिलाए।।