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कबीर भजन गुरु समान दाता कोए नहीं रे – Kabir Bhajan Guru samaan daata koi nahi Re.

Kabir bhajan Guru ka Samaan

कबीर भजन

गुरु समान दाता कोए नहीं रे 

गुरु समान दाता कोए नहीं रे,जग मांगन हारा।
क्या रैयत क्या बादशाह,सब ने हाथ पसारा।
तीन लोक के पार जिने, सत शब्द पुकारा
सात दीप नो खण्ड में,ताका सकल पसरा।
पाथर को पूजत फिरे, ता में क्या पावे
तीर्थ का फल एक है,द्वारे सन्त जिमावे।
अपराधी तीर्थ चला,क्या तीर्थ नहाया
कपट दाग धोया नहीं,न्यूए अंग झकोला।
कागज नाव बनाए के,बिच लोहा बिसारा
हल्का हो सो उबरे,पापी डूबे मझधारा।
वेश मनोरथ पिया मिले,घट भया उजियारा
सद्गुरु पार उतारिया,न्यूए सन्त पुकारा।
कह कबीरा धर्मिदास से बाहर क्या डोले
तेरा साईं तुझ मेँ घट भीतर बोले।
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