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गुरू बिन मुक्ति ना, चाहे करले जतन हजार – कबीर दास की दोहा

कबीर के गुरु का क्या नाम था

Kabir ke Shabd

गुरू बिन मुक्ति ना, चाहे करले जतन हजार।।
गुरु बिन ज्ञान, ज्ञान बिन मुक्ति।
आशा तृष्णा ना तेरी रुकती।
मिटता ना अहंकार।।
गुरु वचन पे डटे बिना हे, लाख चौरासी कटे बिना हे
कोय हो नहीं सकता पार।।
सत्तनाम के हीरे मोती, गुरू ज्ञान से खिलजा ज्योति।
मिट जावै अंधकार।।
सद्गुरु परम् पुरूष हों पूरे, सुमरण करके देख ज़हूरे।
समझ शब्द की सार।।
कृष्ण लाल बसै रोहतक में,
ज्ञान की जोत चसै रोहतक में।
हर पुनवासी शनिवार।।
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