Kabir ke Shabd
एक अचम्भो देखो मेरी माय,
वन में चरा लाई सिंह ने गाय।।
इनके गाँव की उल्टी रीत,
नीचे छान ऊपर है भीत।
झरिया को पानी, मुंडेरी चढ़ जाय।।
आग जले चुल्हा बुझ जाय,
पोवन आली ने रोटी खाई।
चोर के गोडां में चोर की माय।।
कह गए नाथजी ऐसी वाणी,
बिन जल ताल भरा है पानी।
पेड़ कटा फिर फल लग जाय।।
कह गए गोरख उल्टी वाणी,
दूध का दूध और पानी का पानी।।
परखन वाला तुरत मर जाये।।