Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
अवधू अमल करै, सो पावै।
जब लग अमल असर ना होवै,तब लग प्रेम न जावै।
बिन खाए फल स्वाद बखाने,कहत न शोभा पावै।।
अंधा हाथ मे लेकर दीपक, जस प्रकाश दिखावै।
ओरां आगै करै चांदना, आप अंधेरे धावै।।
ओरां आगै करै चांदना, आप अंधेरे धावै।।
बिन गुरु ज्ञान सत्त शब्द न पावै,नाहक जन्म गंवावै।
अंधा आप दस अंध ले संग में, जग में गुरु कहावै।।
अंधा आप दस अंध ले संग में, जग में गुरु कहावै।।
मूल महल की खबर न जानै, औरों को भरमावै।
ले अमृत मूर्ख अरण्ड सींचै, कल्प वृक्ष बिसरावै।।
ले अमृत मूर्ख अरण्ड सींचै, कल्प वृक्ष बिसरावै।।
आग लगी जले घर अपना,मूर्ख घूर बुझावै।
पढा लिखा जो पण्डित भूलै,वा को कौन समझावै।।
पढा लिखा जो पण्डित भूलै,वा को कौन समझावै।।
कह कबीर सुनो हो गोरख,ये सन्तन नहीं भावै।
कोई सूर पूर जग माहीं,जो ये पद अर्थावै।।
कोई सूर पूर जग माहीं,जो ये पद अर्थावै।।