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एके साथे सब सधे -कवि रहीम -20

एके साथे सब सधे

एके साथे सब सधे, सब साथे सब जाया।

रहिमन मूलहिं सींचिबो,” फूले फले’ अघाय।। 20।।

अर्थ–कवि रहीम कहते हैं कि जैसे केवल जड़ को सींचने से ही वृक्ष में फूल और फल की प्राप्ति से तृप्त हुआ जा सकता है, उसी प्रकार : प्रभु की भक्ति करने से समस्त कार्य सिद्ध हो सकते हैं। तब ईविभिन्‍न मत-मतांतरों की ओर भटकने से क्या लाभ? उससे तो सर्वस्व ही नष्ट हो जाता है।

भाव—यहां कवि परमात्मा के एक ही स्वरूप को मानता है। परमात्मा दो या दो से अधिक नहीं है। ईश्वर एक ही है। विभिन्‍न मत-मतांतर और देवी-देवताओं को पूजने या मानने से कोई लाभ नहीं है। जिस प्रकार एक जड़ को सींचने से सारा वृक्ष हरा-भरा और फलदार हो जाता है, उसी प्रकार एक ही ईश्वर के प्रति प्रेम भाव अथवा भक्ति रखने से समस्त जीवन सफल हो जाता है। इधर-उधर भटकने से हम अपने जीवन को व्यर्थ में ही नष्ट करते हैं।

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