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 मगलाचरण दोहा

कहै कबीर सुनो
बन्दो सत्य
हाड़ चुसि गाड़े अञ्जना,
जारु अहित भये मगना।
ओ ब्राह्मण,
उत्तम जन्म गवाए अपना।
कबीर के,
चरण कमल सिरनाय ।
जासु ज्ञान दिनकर निकर,
ब्रह्म तुम देत नशाय |१|
भ्रम छोड़य पथ विकट के.

निकट लखाबो राम ।
तापे गुरु को कीजिए,
कोटि को टि
विनय सहित वन्दना करो,
चरण कमल कर. जोरि ।
गुरु की महिमा कहि सके,
कहाँ ऐसी मति मोरिं। ३
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