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गजल-३३
अब तो पड़ी है आय बीच धार में नैया
तुम बिन दयाल और कौन पार करैया।
वायु बहे विषय की प्रबल हाय रे दैया।
तृष्णा तरंग मोह
घबरा के चले
नाथ
जाल भवर डुबै या ।
वो नाकी चबा रहा है।
जी को बचा रहा है, पा मचा रहा है।
गम के चरित्र सुनके आंसू बहा रहा है। भ०
साहिब कबीर धीर वीर पीर मिटावो ॥
निज दास धर्मदास को विश्वास बढ़ावो ।
मस्तक पे हाथ धर के सतनाम सुनावो।
यह जन्म मरण आधि व्याधि फन्द नशावो।
चौरासी के चक्कर में गोते लगा रहा है।
भव सिन्धु की धारा में गोते लगा रहा है।
रहा है मस्तक झुका रहा है।
गोते लगा
चरणों में अब तुम्हारे आंसू बहा रहा है।
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