क्यो करते हैं मौन धारण …
मौन के वाचिक एंव वैचारिक-दो मुख्य प्रकार होते हैं। इनमें से वाचिक मौन का पाठ बचपन में ही सीखने को मिल जाता है। जब वाद-विवाद एवं मतभेद उत्पन्न होता है, उस समय क्रोध की संभावना रहती है। ऎसे में प्रासंगिक मौन का सहारा लेने पर अच्छा परिणाम निकलता है। नित्य मौन की समयावधि कई दिन होती है। नैमित्तिक मौन पालन के लिए विशिष्ट कालावधि का चुनाव करता होता है। अष्टमी, एकादशी, पूर्णिमा एवं अमावस्या-इन तिथियों का मौन पालन विशेष स्मरणीय रहता है। इसके अलावा पूजा, पंचमहायज्ञ, जप तथा पुरश्चरण आदि धार्मिक प्रसंगों पर मौन पालन आवश्यक है। साथ ही साथ वैचारिक मौन के समय कोई भी विचार मन में नहीं आने देना चाहिए। वैचारिक मौन ही श्रेष्ठ मौन माना जाता है।