एक लोक कथा के अनुसार किसी गांव के बाहर दो संत एक झोपड़ी में रहते थे। दोनों रोज सुबह अलग-अलग गांवों पर जाते और भिक्षा मांगते। शाम को झोपड़ी में लौट आते थे। दिनभर भगवान का नाम जपते। इसी तरह इनका जीवन चल रहा था। एक दिन वे दोनों अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने गए निकल गए। शाम को अपने गांव लौटकर आए तो उन्हें मालूम हुआ कि गांव में आंधी-तूफान आया था।
जब पहला संत अपनी झोपड़ी के पास पहुंचा तो उसने देखा कि तूफान की वजह से झोपड़ी आधी टूट गई है। वह क्रोधित हो गया और भगवान को कोसने लगा। संत ने सोचा कि मैं रोज भगवान के नाम का जाप करता हूं, मंदिर में पूजा करता हूं, दूसरे गांवों में तो चोर-लूटेरे लोगों के घर को सही-सलामत है, हमारी झोपड़ी तोड़ दी। हम दिनभर पूजा-पाठ करते हैं, लेकिन भगवान को हमारी चिंता नहीं है।
कुछ देर बाद दूसरा संत झोपड़ी तक पहुंचा तो उसने देखा कि आंधी-तूफान की वजह से झोपड़ी आधी टूट गई है। ये देखकर वह खुश हो गया। भगवान को धन्यवाद देने लगा। साधु बोल रहा था कि हे भगवान, आज मुझे विश्वास हो गया कि तू हमसे सच्चा प्रेम करता है। हमारी भक्ति और पूजा-पाठ व्यर्थ नहीं गई। इतने भयंकर आंधी-तूफान में भी हमारी आधी झोपड़ी तूने बचा ली। अब हम इस झोपड़ी में आराम कर सकते हैं। आज से मेरा विश्वास और ज्यादा बढ़ गया है।
इस छोटे से प्रसंग की सीख यह है कि हमें सकारात्मक सोच के साथ हालात को देखना चाहिए। इस प्रसंग में पहला संत दुखी रहता है, क्योंकि उसकी सोच नकारात्मक है। जबकि दूसरा संत सुखी है, क्योंकि वह भगवान पर भरोसा करता है और उसकी सोच सकारात्मक है। बुरे समय में नकारात्मक बातों से बचेंगे तो हमेशा सुखी रहेंगे।