अनाधिकारी राजा !
एक भिक्षुक अचानक राजा हो गया था । उस देश के संतानहीन नरेश ने घोषणा की थी कि उनकी मृत्यु के पश्चात् जो पहिला व्यक्ति नगरद्वार में प्रवेश करे, उसे सिंहासन दे दिया जाय । भाग्यवश नगरद्वार मे प्रवेश करने वाला पहिला व्यक्ति वह भिखारी था । मंत्रियो ने उसे राजतिलक कर दिया ।
Unatuhorized King |
भिक्षुक क्या जाने राज़ प्रबन्ध । राजा सेवक स्त्रच्छन्द व्यवहार करने लगे । अधीनस्थ सामन्तो ने कर देना बंद कर दिया । प्रजा उत्योडित होने लगी राज़ सेवकों द्वारा मर्जी मनमानी करने लगे । नरेश कुछ करता भी तो अनुष्णवहीन होने के कारण परिणाम उलटा निकलता । उसके विरुद्ध राज्य में असंतोष बढता जाता था । स्वयं वह अत्यन्त क्षुब्ध हो उठा था।
घूमते हुए उसका एक पुराना मित्र उस नगर मेँ आया । राजा से उसने मिलने की इच्छा प्रकट की । एकान्त में राजा उससे मिला। मित्र ने कहा आपके सौभाग्य पर मैं बधाई देने आया हूँ।
राजा ने कहा-मेरे दुर्भाग्य पर रोओ और भगवान से प्रार्थना करो कि मैं इस विपत्ति से शीघ्र छूट जाऊँ। जब मैं भिक्षुक था तो भिक्षा में जो भी रूखी-सूखी रोटी मिलती थी उसे खाकर निक्षिन्त रहता था । परंतु आजकल तो अनेक चिन्ताओँ के कारण मैं सदा दुखी रहता हूँ। मुझें ठीक निद्रा तक नहीं आती।