कच्छप अवतार जयन्ती
सोलह प्रमुख अवतारों में से एक भगवान् विष्णु का अवतार है उनका कच्छप का रूप धारण करना। देवताओं ओर असुरों ने मिलकर जब ममुद्र मन्थन किया था उस समय भगवान् विष्णु ने एक विशाल कच्छप अर्थात कछुए के रूप में मदिराचल पर्वत को अपनी पीठ पर सम्हाला था। उसी की याद में आज के दिन भगवान विष्णु के कच्छप रूप की विशेष पूजा-अराधना की जाती है।
भगवान के विग्रह को स्नान कराने और वस्त्राभूषण पहिनाने के पश्चात् धूप दीप, नेवेद्य से उनकी पूजा की जाती है ओर चरणामृत व प्रसाद भक्तों में बांट दिया जाता हे। भगवान के कच्छप रूप धारण की कथा सुनने अथवा पढ़ने ओर दिन भर ब्रत रखकर शाम को फलाहार करने का विशिष्ट महत्व है।
आप भगवान् विष्णु के चित्र या विग्रह का प्रयोग करें अथवा कच्छप भगवान् की मूर्ति का, यह पूजा भगवान् विष्णु की ही है और आरती भी “ओम जय जगदीश हरे! गाई जाएगी। होली के बाद चेत्र मास के कृष्ण वृक्ष में तो सभी परिवारों में बसोड़ा पूजा जाता है, उसी प्रकार वैशाख लगते सोमवार, बुधवार अथवा शुक्रवार को कुछ परिवारों में बुडढ़ा बसोड़ा भी मनाया जाता है। इसकी सम्पूर्ण विधि चैत्र मास के बसोड़े के समान ही है। कुछ परिवारों में इस दिन शीतला माता की विशेष पूजा भी की जाती है। वैसे दिन-प्रतिदिन यह त्यौहार प्राय: लुप्त होता जा रहा है।